मकर संक्रांति : बेहतर की ओर बदलते चलें
मकर संक्रांति / 14 जनवरी 2022 / लेख
मकर संक्रांति : बेहतर की ओर बदलते चलें
फादर डॉ.
एम.
डी.
थॉमस
निदेशक, इन्स्टिट्यूट
ऑफ
हार्मनि
एण्ड
पीस
स्टडीज़,
नयी
दिल्ली
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14 जनवरी मकर संक्रांति के त्योहार के लिए जाना जाता है। यह त्योहार किसी खास समुदाय से नाता नहीं रखते हुए भूगोल और सूरज की स्थिति की ओर इशारा करता है। ज्योतिष के अनुसार माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन सूरज धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है।
मकर संक्रांति को लोग उत्तरायणी भी कहते हैं। क्योंकि यह दिन 22 दिसंबर और 21 जून के बीच होने वाले उत्तरायण समय के भीतर आता है, जब सूरज दक्षिण से उत्तर की ओर चलता है।
मकर संक्रांति का पर्व करीब-करीब पूरे भारत में मनाया जाता है। लेकिन, विविध प्रांतों में इसका नाम व रूप-रंग कुछ अलग होता है। केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस पर्व का नाम संक्रांति है, जब कि तमिल नाडु में यह पोंगल के रूप में जाना जाता है। पंजाब और हरियाणा में यह पर्व लोहड़ी है, तो असम में बिहू है।
नयी फसल की कटाई से जुड़ा हुआ यह त्योहार अलग-अलग पकवान के लिए मशहूर है। दाल-चावल की खिचड़ी और तिल-गुड़ का लड्डू इनमें खास हैं। उमंग और उल्लास से भरा-पूरा यह मंगलकारी पर्व स्नान व दान के साथ-साथ पतंगबाज़ी के लिए भी जग-ज़ाहिर है।
15-16वीं सदी के निकलस कोपरनिकस के अनुसार धरती सौर मंडल में अन्य ग्रहों के साथ सूरज की परिक्रमा करती है, न कि सूरज धरती की। यह भी ज़ाहिर बात है कि सूरज से धरती को गरमी, रौशनी, ऊर्जा और ताकत मिलती हैं।
यदि सूरज न होता तो धरती पर अंधेरा ही अंधेरा ही छाया रहता। सूरज के बिना न पेड़-पौधे, न जानवर और न इन्सान जिंदा रह सकते। यहाँ तक कि जिस दिन सूरज दिखायी न देता, उस दिन मानो सब कुछ मुर्झाया हुआ है। इन्सान की कई परंपराओं में सूरज के प्रति श्रद्धा, भक्ति और अध्र्य करने का बस यही तर्क है।
लेकिन, ‘सूरज’ एक ग्रह है और उसे पूजा-पाठ से कोई लेना-देना नहीं है। उलटे, इन्सान को चाहिए कि वह सूरज से प्रेरणा और फायदा लेकर सूरज के लायक जिंदगी जिये। अंधेरा-जैसा काला काम न हो, बल्कि उजाले के लायक भला काम हो, यही कायदा है।
साथ-साथ, सूरज की गरमी के सहारे ठंडी जि़ंदगी से बचे रहे और सूरज की ऊर्जा पाकर सुचारू रूप से जि़ंदगी जीने की ताकत हासिल करे, यही जीने का सलीका है। अपनी-अपनी जि़ंदगी को उपजाऊ और सार्थक बनाना ही सूरज के लायक जि़ंदगी की पहचान है, यही सूरज के महान योगदान के साथ इन्साफ भी।
साथ ही, संक्रांति का इशारा सूरज से भी आगे बढक़र ‘परमात्मा’ की ओर है, जो कि जान और जीवन का सोता ही नहीं, सूरज के लिए भी जि़म्मेदार है। संप्रदायों की दीवारों से ऊपर उठकर कल्पना और एहसास करने पर पता चलता है कि समूचे कायनात की रचना में रचनाकार ही कूट-कूट कर मौजूद है। वह परम आत्मा अपने आप में गरमी है, रौशनी है, ऊर्जा है और ताकत भी।
जिस प्रकार धरती सूरज की परिक्रमा करती है, ठीक उसी प्रकार पूरे कायनात से मिलकर तथा ऊपरी चेतना से युक्त होकर इन्सान को प्राण के उस मालिक की परिक्रमा करती रहनी चाहिए। तभी संक्रांति और उत्तरायणी धरती के लिए, खास यौर पर इन्सान के लिए, असल में सार्थक होगी।
इतना ही नहीं, संक्रांति का अर्थ ‘एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान की ओर जाना’ है। कुछ छोड़ना, पार करना तथा कहीं ओर पहुँचना इसकी प्रक्रिया है। संक्रांति का इशारा परंपरा और विरासत की ओर भी है, जो कि हस्तांतरित होती है। परिवर्तन, घोर परिवर्तन और उलट-पलट, यही संक्रांति का मूल भाव है। मतलब है, संक्रांति ज़िंदगी को परिभाषित करती है।
बदलना जीवन का बुनियादी नियम है। चलते रहें, बदलते रहें, आगे बढ़ते रहें और बेहतर को हासिल करें, इसी का नाम ज़िंदगी है। जो बदलता नहीं, मुर्दा होना उसकी नियति है। परंपरावादी, कट्टरवादी और संप्रदायवादी खुद में गाढ़ा जाता है, जोकि खुदकुशी के समान है। इसलिए शायर बशीर बद्र यह अरमान ज़ाहिर करते हैं, ‘खुदा हमें ऐसी खुदाई न दे, कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे’।
इसलिए. दोस्तो, हम लोगों को भूत काल से वर्तमान की ओर तथा वर्तमान से भविष्य की ओर बदलना होगा। खुद के लिए सोचना कुछ कम कर अपने परिवार, अपना अड़ोस-पड़ोस, अपनी संस्था, अपना समुदाय, अपना देश, अपना समाज और सारे कायनात के लिए भी कुछ सोचना होगा।
दूसरे शब्दों में कहा जाय, हम लोगों को स्वार्थ से परार्थ की ओर तथा परमार्थ की ओर बदलते रहना होगा। यही संक्रांति है, यही जि़ंदगी है, और यही वक्त का तकाज़ा व पुकार भी।
‘मकर संक्राति 2022’ के पुनीत मौके पर ऐसा संकल्प किया जाना चाहिए कि बदलना और बेहतर से बेहतरीन की ओर चलते रहना जीवन की नीति बने।
साथ ही, इन्सान धरती के साथ मिलकर सूरज की तथा सारे देश व समाज के साथ मिलकर रचनाकार परमात्मा की परिक्रमा करता रहे तथा इस प्रकार वह अपनी वजूद को चरितार्थ करता जाये। संक्रांति का पर्व भारत और दुनिया में इस रूप में सार्थक हो, यही लेखक की मंगल कामनाएँ हैं।
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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।
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